डिजिटल पेमेंट्स भारतपे (BharatPe) और फोनपे (PhonePe) ने अपनी कानूनी लड़ाई खत्म करने का फैसला किया है। यह कानूनी लड़ाई ‘पे’ ट्रेडमार्क के इस्तेमाल को लेकर चल रही थी। भारतपे के चेयरमैन रजनीश कुमार ने इस मामले पर कहा, ‘यह इंडस्ट्री के लिए पॉजिटिव घटनाक्रम है। दोनों कंपनियों के मैनेजमेंट ने जिस तरह की परिपक्वता और प्रोफेशनलिज्म दिखाया है, वह काबिल-ए-तारीफ है। दोनों के मैनेजमेंट ने मिलकर कानूनी विवादों को निपटाया और अब डिजिटल पेमेंट का मजबूत इकोसिस्टम तैयार करने में जुटे हैं।’
भारतपे और फोनपे की तरफ से जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि दोनों कंपनियों ने एक-दूसरे के खिलाफ ट्रेडमार्क को लेकर सभी तरह की आपत्तियों को वापस लेने का फैसला किया है, जिससे उन्हें अपने-अपने ट्रेडमार्क के रजिस्ट्रेशन को लेकर आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। फोनपे के फाउंडर और CEO समीर निगम का कहना था, ‘मुझे बेहद खुशी है कि हम इस मामले में समझौते पर पहुंच गए हैं। इस नतीजे से दोनों कंपनियों को आगे बढ़ने और भारतीय फिनटेक इडस्ट्री को बढ़ाने पर फोकस करने में मदद मिलेगी।’ ‘पे’ का इस्तेमाल करने को लेकर चल रहा विवाद 2018 से चल रहा है।
फोनपे ने अगस्त 2018 में नोटिस जारी कर भारतपे से ट्रेडमार्क ‘पे’ का देवनागरी में इस्तेमाल बंद करने को कहा था। इसके बाद ‘भारतपे’ देवनागरी में ‘पे’ का इस्तेमाल करने को लेकर सहमत हो गया था। इसके बाद भारतपे ने अपनी सेवाओं के लिए सिर्फ ‘भारतपे’ का इस्तेमाल शुरू किया। फोनपे ने 2019 में दिल्ली हाई कोर्ट में भारतपे के खिलाफ याचिका दायर की और आरोप लगाया कि ‘भारतपे’ ने फोनपे के रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क का इस्तेमाल किया है।
इसके बाद अक्टूबर 2021 में भारतपे की पैरेंट कंपनी रिजिलयंट इनोवेशंस प्राइवेट लिमिटेड ने 6 याचिकाएं दायर कर देवनागरी में ‘पे’ लोगों का इस्तेमाल करने के लिए रजिस्ट्रेशन कैंसल करने की मांग की थी। साथ ही, 2021 में ही फोनपे ने भारतपे के खिलाफ कमर्शिय इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी सूट दायर किया था। इसके बाद इस मामले में कानूनी प्रक्रिया चल रही थी। हालांकि, अब दोनों कंपनियों ने इस विवाद को खत्म करने का फैसला किया है।